भोर की लाली,
फसलों की बाली,
नैनो की जाली,
सब बेईमान की है।
अपने मेहनत को तौलो यारो,
यही एक काम की है।
Sandeep yadav
कद कुदरत का,
भय प्रकृत का,
रज नफरत का,
सब इंसान की हैं,
अपने आत्मिक शोर जानो यारो,
यही एक काम की हैं|
Sandeep yadav
माटी (मिट्टी) का शरीर,
काठी सा खेल,
आईने की परछाई,
सब आराम की हैं
खुद की परछाई देखो यारो,
यही एक काम की हैं|
Sandeep yadav
शोहरते, मुद्दत, पैसे,
सब नाम की हैं.....
मुसकुरा कर जी लो यारो यही एक काम की हैं|
Sandeep yadav