भोर की लाली,  फसलों की बाली, नैनो की जाली,  सब बेईमान की है। अपने मेहनत को तौलो यारो, यही एक काम की है।

Sandeep yadav

कद कुदरत का, भय प्रकृत का, रज नफरत का, सब इंसान की हैं, अपने आत्मिक शोर जानो यारो, यही एक काम की हैं|

Sandeep yadav 

माटी (मिट्टी) का शरीर,   काठी सा खेल, आईने की परछाई, सब आराम की हैं खुद की परछाई देखो यारो, यही एक काम की हैं|

Sandeep yadav